हरि ॐ तत्सत्
हरि ॐ तत्सत्
स्वामी निरंजनानन्द योगकेन्द्र जमुई, बिहार योग विद्यालय मुंगेर से शिक्षा दीक्षा और आशीर्वाद प्राप्त कर उनके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अध्यात्मिक मार्गदर्शन में रहते हुए बिहार योग पद्धति (जो योग विज्ञान, योग मनोविज्ञान, योग दर्शन और योग आध्यात्म का सम्मिश्रण है एवं स्वयं सिद्ध हैं ) को जानते हुए एवं मानते हुए अपने गुरु परंपरा में विश्वास रखते हुए स्वयं की नैतिक जिम्मेदारियों से प्रतिबद्ध हो कर सन 1996 से अनवरत कार्यरत है|गुरु कृपा से हमारे योग केन्द्र की योग शिक्षण शैली योग चिकित्सा शैली योग आधारित आध्यात्मिक चर्चा बच्चों के लिए योग प्रशिक्षण शैली ध्यान यज्ञ और उपासना विधि औरों से भिन्न है| विगत 23 वर्षों में गुरु आशीर्वाद से मैंने किसी को इस योग केंद्र से निराश होकर लौटते नहीं देखा है!हमारे संस्थान ने जीवन शैली से संबंधित लगभग 35 बीमारियों पर सफल शोध किया है जिसमें शत-प्रतिशत हमने उनके रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ते देखा है|कई की परेशानियां पूरी तरह से समाप्त हो गई, कई लोग अपनी परेशानी मुक्ति की तीव्रता को पहले से बेहतर पाया ! योग केन्द्र जमुई ने जमुई के आसपास बिहार एवं अन्य राज्यों में लगभग 1000 से ज्यादा सामान्य योग स्वास्थ्य रक्षा सत्र, विशेष योग स्वास्थ्य रक्षा सत्र, योग आध्यात्म सत्र, योग सत्संग सत्र का आयोजन किया है| योग केन्द्र जमुई सामान्य महिला, पुरुष ,बच्चे, ग्रामीण, जेल में कैदियों के लिए,जिला अस्पताल,व्यवसायिक प्रतिष्ठान,राष्ट्रीय खिलाड़ी,बैंक कर्मी, देश के प्रशासनिक पदाधिकारी, सेना,पुलिस,औद्योगिक संस्थान, राजनेता, डॉक्टर एवं जिला स्तरीय पदाधिकारी और कर्मचारी के लिए सत्र आयोजित करते आ रहे हैं| योग केन्द्र जमुई आम जनमानस में अध्यात्मिक चेतना के जागृति हेतु विगत 23 बर्षो से अनवरत रामायण पाठ, गीता पाठ, दुर्गा पाठ, शतचंडी, महामृत्युंजय जप, गुरु पूर्णिमा, योग महोत्सव, संकीर्तन, क्रिया योग से सम्बंधित अभ्यास, कर्म योग, ध्यान शिविर एवं हठयोग की गुह्या विद्या जेसे कार्यक्रम संचालित करता आ रहा है ! योग साहित्य की विस्तृत जानकारी हेतु पुस्तकालय की स्थापना भी किया है !
स्वामी निरंजनानन्द योग केन्द्र के सत्यानन्द आश्रम और शिवानन्द आश्रम में उपरोक्त कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं ! हम भविष्य में अपने संस्थान में बिहार योग विद्यालय के मार्गदर्शन एवं पर्यवेक्षण में आवासीय स्वास्थ रक्षा सत्र,बाल योग अनुसंधान सत्र एवं योग शिक्षक प्रशिक्षण सत्र का आयोजन कर सकेंगे!
योग दर्शन
योग अतीत के गर्भ में प्रसुप्त कोई कपोल कथा नहीं है ! यह वर्तमान की सर्वाधिक मूल्यवान विरासत है!यह वर्तमान युग की अनिवार्य आवश्यकता और आने वाले युग की संस्कृति है !
“स्वामी सत्यानंद सरस्वती”
आज विज्ञान जिस तीव्र गति से प्रगति कर रहा है उसके कारण मनुष्य का भौतिक सुविधाओं से संपन्न होते हुए भी मानसिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है| अशांति एवं अराजकता में वृद्धि हो रही है| स्नेह सज्जनता में कमी आ रही है| आज इसके संतुलन के लिए यदि आध्यात्म का उसी गति से प्रचार-प्रसार नहीं हुआ तो समृद्धि का यह संतुलन बिगड़ जाएगा एवं मनुष्य को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा| आज इस असंतुलन के लक्षण प्रगट हो रहे हैं| जिसका मूल कारण विज्ञान का अनियंत्रित विकास एवं आध्यात्म की उपेक्षा ही है| क्षणिक की उपलब्धि में शाश्वत मूल्यों का विस्मरण कर देना बुद्धिमानी नहीं कही जा सकती तथा क्षणिक की उपेक्षा से भी जीवन अर्थहीन बन जाता है| दोनों का समानांतर विकास जीवन को सरस,शांत एवं संतुलित रखने में महत्वपूर्ण है|
भारतीय साहित्य विश्व में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है ! विभिन्न मतों, सम्प्रदायों, पन्थो, मान्यताओ आदि के द्वारा इसका जितना विकास देखने को मिलता है उतना अन्य किसी धर्मो में नहीं मिलता| भिन्नताए समाज के लिये अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है किन्तु अज्ञानियों के हाथो में पड़कर इनमें संकीर्णता आ जाने से ये विकृत होकर अभिशाप सिद्ध हो रहे है ! इनके सत्य स्वरुप को समझने की, जिससे ये मानव के लिये कल्याणकारी बन सके| आध्यात्म के सिद्धान्तो में आज जितना विरोध दिखाई देता है, वह सिद्धान्तों के कारण नहीं, बल्कि व्यक्ति की संकीर्ण दृष्टि, निहित स्वार्थ, धर्मान्धता एवं अज्ञान के कारण है| सत्य का ज्ञान, विचारो की निष्पक्षता के विना प्राप्त करना असम्भव है| संकीर्ण बुद्धि वाले धर्म और अध्यात्म के अधिकारी नहीं है न उन्हें इससे कोई लाभ ही होगा|
अतः ज्ञान के इच्छुक व्यक्ति को संकीर्णता से ऊपर उठकर ही इसका अध्ययन, चिंतन एवं मनन करना चाहिए|
आदिकाल से मानव जीवन के दो आवश्यक पहलू क्रमशः संसार और आध्यात्म रहे है ! एक फलदार वृक्ष की शाखाएं, तना एवं फल हमें दिखाई पड़ता है जो दृष्टिगोचर है, यही संसार है| लेकिन यह संसार रूपी वृक्ष नहीं दिखाई पड़ने वाले जड़ पर टिका होता है इसी माध्यम से वह पल्लवित और पुष्पित होता है, यही आध्यात्म है ! ये दोनों पहलू मानव रूपी पंछी के दो पंख है| सफल उडान भरने के लिये दोनों को स्वस्थ एवं संतुलित होना ही होगा ! आज मानव बीमार, परेशान, दुखी, असंतोषी, भयभीत किंकर्तव्यविमुढ, दिग्भ्रमित है, उसकी मनोदशा एक परकटे पंछी की तरह हो चुकी है| क्योकि उसके जीवन से प्रेम, करुणा, दया, सहिष्णुता, क्षमा, सेवा और भक्ति समाप्त हो चुकी है| जो मानव जीवन का आध्यात्मिक पहलू है !
“स्वामी आत्मस्वरूपानंद सरस्वती “